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परिचर्चाः समाज के कार्यों को आत्मसात कर रही सरकार, यह सामाजिक उपलब्धि

परिचर्चाः समाज के कार्यों को आत्मसात कर रही सरकार, यह सामाजिक उपलब्धि
रायपुर। चौबे कालोनी स्थित महाराष्ट्र मंडल के नये भवन के लोकार्पण समारोह के दूसरे दिन  "छत्तीसगढ प्रदेश के विकास में सामाजिक संस्थाओ की भूमिका पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। परिचर्चा में कई समाज के प्रमुखों ने शिरकत कर अपने-अपने विचार और उन समाजों द्वारा किए जा रहे सामाजिक कार्यों को रखा। 
 
 
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि समाजसेवी शशि वरवंडकर थे। अध्यक्षता मंडल अध्यक्ष अजय काळे ने क। वहीं विशेष अतिथि के रुप में समाजसेवी कन्हैया अग्रवाल उपस्थित रहे। कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती के तैलचित्र के पूजन और दीप प्रज्जवलन के साथ हुआ। 
 
मंचस्थ अतिथियों का स्वागत पारंपरिक महाराष्ट्रीयन पद्धति से सूत, शाल और श्रीफल भेंटकर किया गया। मंडल अध्यक्ष अजय काळे ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में आज के कार्यक्रम के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र मंडळ का यह भवन सभी समाजों को समर्पित है। सभी समाज के लोग यहां आए और इस निर्माण कार्य को देखे इस मंशा से इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस आयोजन के जरिए आज कई समाज के मंच पर है। 
 
 
परिचर्चा के विषय पर प्रकाश डालते हुए मंडळ सचिव चेतन दंडवते ने कहा कि आज के परिचर्चा का विषय है छत्तीसगढ़ के निर्माण में सामाजिक संस्थाओं की भूमिका। उन्होंने कहा कि हमने यह विषय इसलिए चुना है ताकि छत्तीसगढ़ के समाजों को आपस में जोड़ा जा सके। सभी समाज एक दूसरे के अच्छे और सराहनीय कार्य प्रेरणा ले सके। 
 
कार्यक्रम  को संबोधित करते हुए समाजसेवी कन्हैया अग्रवाल ने कहा कि आज सभी समाज सेवा कार्यों मे जुटा है। सरकार आज इन समाजों से प्रेरित होकर इनके सेवा कार्यों को अपना रही है। यह समाज के लिए बड़ी उपलब्धि है। बात करें स्वास्थ्य सेवाओं की तो कोरोना काल में छत्तीसगढ़ के सभी समाजों ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 
 
 
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि ने शशि वरवंडकर मंच पर आते ही भावुक हो गए। शशि वरवंडकर ने अपनी मां की स्मृति में महाराष्ट्र मंडल के मंच का निर्माण करवाया है। उन्होंने कहा कि समाज मां ही तो है। उन्होंने पुरानी बातें को याद करते हुए कहा कि जब मंडळ के बालिका दिव्यांग गृह के लिए भवन का निर्माण होना था तो शासन की ओर से 25 लाख रुपये स्वीकृत हुए थे। काफी दिनों तक राशि नहीं मिली। 
 
 
वरवंडकर जी ने कहा कि तब मैं दिल्ली गया और एक अधिकारी से पैसे स्वीकृत करने को कहा। तो उन्होंने मुझसे पूछा कि आपका भवन कितनी लागत में बन रहा है। मैंने बताया कि 50 लाख की लागत से। तो उन्होंने मुझसे बाकी पैसों की व्यवस्था के बारे में पूछा। मैंने बताया कि वह समाज द्वारा एकत्र किया जाएगा। तो उन्होंने मुझे कहा कि फिर आपको पैसे की क्या जरूरत है। तो मैं बोला मैं दिव्यांग बालिकाओं का प्रतिनिध बनकर आया हूं। और मैं अपने हक  का पैसा मांगने आया हूं।