न्यूज़

जीवन में अच्छे व्यवहार के लिए अच्छी सोच बेहद जरूरीः निमोणकर

जीवन में अच्छे व्यवहार के लिए अच्छी सोच बेहद जरूरीः निमोणकर

0- महाराष्ट्र मंडल में संत ज्ञानेश्वर स्कूल के तीन दिवसीय टीचर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम का समापन

रायपुर। हमारी सोच और व्यवहार जितना उत्कृष्ट होगा, उसी के अनुरूप  हमारा व्यवहार भी होगा इसलिए जीवन में अच्छी सोच का होना जरूरी होता है। कई बार व्यवहार को हम घमंड मान लेते हैं। सोच के दुष्परिणाम भी होते हैं। नकारात्मक सोच हमारी छवि को उसी के अनुरूप बनाएंगी। उक्त बातें महाराष्ट्र मंडल में आयोजित तीन दिवसीय टीचर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम के अंतिम दिवस सिटकाॅन के पूर्व एमडी व अमोघ के एमडी, स्किल्स डेवलपमेंट स्पेशलिस्ट प्रसन्न निमोणकर ने कही। 
टीचर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम के अंतिम दिन 'एटिट्युड बिहेवियर एंड सक्सेस' पर बोलते हुए निमोणकर ने कहा कि सीखने की कोई सीमा नहीं होती। पढ़ते रहेंगे, तो सीखते रहेंगे। शुरुआत हमेशा पहली बार होती है। पहला कदम उठाना ही कठिन होता है। लोग दो तरह की सोच पर चर्चा करते हैं, पहला सकारात्मक और दूसरा नकारात्मक। मैं यहां इन दोनों के साथ सृजनात्मक सोच पर भी चर्चा करने आया हूं। 
कुछ छोटे-छोटे उदाहरण पेश करते हुए निमोणकर ने सृजनात्मक सोच पर कहा कि किसी काम को तीसरे एंगल से सोचना या करना क्रिएटिविटी के साथ किया गया हो, तो वह ज्यादा प्रभावी होता है। उन्होंने कहा कि एजुकेशन, नाॅलेज, समझ, हार्डवर्क और एटिट्युड को अंग्रेजी के अल्फाबेल में लिखें और ए को एक और जेड को 26 मानकर इन शब्दों की स्पेलिंग को अंकों में बदलें, तो एजुकेशन का टोटल 92, नाॅलेज का 96, समझ का 83, हार्डवर्क का 99 और एटिट्युड का 100 अंक आता है। यह आंकड़े आपको बताते हैं कि एटिट्युड का 100 फीसद होना जरूरी है। फिर सारी चीजें अपने आप अच्छी हो जाएंगी। 
प्रसन्न निमोणकर ने ज्ञान और समझ पर अपने विचार रखते हुए कहा कि दोनों बिल्कुल अलग-अलग चीज है। ज्ञान हम अर्जित करते हैं और समझ हमारे अंदर विकसित होती है। उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि सिगरेट के पैकेट में लिखा होता है कि यह स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है। हम यह पढ़ते हैं तो हमें इसे लेकर ज्ञान मिलता है, लेकिन इसके बाद भी अगर हम सिगरेट पीते हैं तो यह नासमझी है। अगर नहीं पियेंगे तो हम यह मान लें कि हमारे अंदर समझ विकसित हो गई है। 
निमोणकर ने कहा कि उपलब्धि, स्नेह, व्यापार, सत्ता और आध्यात्म हमारी सोच के उत्प्रेरक को कहीं न कहीं प्रभावित करते हैं। इन सभी में हमारा स्तर न्य़ूनतम, मध्यम और उच्च होता है। उपलब्धि में हमारा स्तर उच्च, स्नेह में मध्यम, व्यापार में उच्च, सत्ता में मध्यम और आध्यात्म में न्यूनतम होना चाहिए। स्कूल के प्राचार्य अगर अपने स्नेह के स्तर को उच्च रखेंगे, तो व्यवस्था में उसका असर दिखाई देगा।
ट्रेनिंग सेशन के ज्ञान को उतारें क्लास रूम में
तीन दिवसीय टीचर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम के समापन अवसर पर महाराष्ट्र मंडल के अध्यक्ष अजय काले ने कहा कि इन तीन दिनों के सेशन में जो आप लोगों ने सीखा, जो टिप्स और पाइंट आपने नोट किए हैं, उन्हें न केवल क्लास रूम में बल्कि अपने जीवन में भी उतारें उस पर अमल करें। तीन महीने में आपको इसका परिणाम नजर आएगा। इस अवसर पर प्रा. अनिल श्रीराम कालेले, स्कूल के सह प्रभारी परितोष डोनगांवकर, सचेतक रविंद्र ठेंगड़ी,  मंडल व्यवस्थापक बीएन नायडू विशेष रूप से उपस्थित रहे।